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उप॑च्छा॒यामि॑व॒ घृणे॒रग॑न्म॒ शर्म॑ ते व॒यम्। अग्ने॒ हिर॑ण्यसंदृशः ॥३८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upa cchāyām iva ghṛṇer aganma śarma te vayam | agne hiraṇyasaṁdṛśaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑। छा॒याम्ऽइ॑व। घृणेः॑। अग॑न्म। शर्म॑। ते॒। व॒यम्। अग्ने॑। हिर॑ण्यऽसन्दृशः ॥३८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:38 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:38


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या प्राप्त करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (ते) आपके (घृणेः) प्रदीप्त सूर्य्य से (छायामिव) छाया को जैसे वैसे (शर्म) गृह को (हिरण्यसन्दृशः) तेज के सदृश समान दर्शन जिनका ऐसे (वयम्) हम लोग (उप) समीप (अगन्म) प्राप्त होवें ॥३८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे विद्वन् ! हम लोग सब ऋतुओं में हुए सूर्य्य को जैसे वैसे प्रकाशमान आपके गृह को प्राप्त होकर छाया के सदृश सेवन करें ॥३८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं प्राप्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! ते तव घृणेश्छायामिव शर्म हिरण्यसन्दृशो वयमुपाऽगन्म ॥३८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उप) (छायामिव) (घृणेः) प्रदीप्तात्सूर्य्यात् (अगन्म) प्राप्नुयाम (शर्म) गृहम् (ते) तव (वयम्) (अग्ने) विद्वन् (हिरण्यसन्दृशः) हिरण्यं तेज इव सन्दृक् समानं दर्शनं येषान्ते ॥३८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे विद्वन् ! वयं सर्वर्त्तुकं सूर्य्यमिव प्रकाशमानं तव गृहं प्राप्य छायामिव सेवेमहि ॥३८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे विद्वाना! आम्ही सर्व ऋतूत प्रकाशमान असलेल्या सूर्याच्या तुझे घर सावलीप्रमाणे समजावे. ॥ ३८ ॥